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At the heart of WLC is the true God and his Son, the true Christ — for we believe eternal life is not just our goal, but our everything.

While WLC continues to uphold the observance of the Seventh-Day Sabbath, which is at the heart of Yahuwah's moral law, the 10 Commandments, we no longer believe that the annual feast days are binding upon believers today. Still, though, we humbly encourage all to set time aside to commemorate the yearly feasts with solemnity and joy, and to learn from Yahuwah's instructions concerning their observance under the Old Covenant. Doing so will surely be a blessing to you and your home, as you study the wonderful types and shadows that point to the exaltation of Messiah Yahushua as the King of Kings, the Lord of Lords, the conquering lion of the tribe of Judah, and the Lamb of Yahuwah that takes away the sins of the world.
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हस्तमैथुन की लत

जवान स्त्री सूर्यास्त की ओर मुड़कर देख रही है।उद्धार की योजना मनुष्य की आत्मा में दिव्य छवि को बहाल करना प्रदान करती है। याहुवाह शुद्ध है। वह पवित्र और परिपूर्ण है। जो लोग उजियाले के राज्य में याहुशुआ के साथ उत्तराधिकारी होंगे वे हर बात में याहुवाह को प्रतिबिम्बिंत करेंगे।

पवित्रशास्त्र बहुत स्पष्ट है कि केवल जो पवित्र हैं वे अनन्त जीवन का उत्तराधिकारी होंगे:

“याहुवाह के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? और उसके पवित्रस्थान में कौन खड़ा हो सकता है? जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिसने अपने मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है। वह याहुवाह की ओर से आशीष पाएगा, और अपने उद्धार करनेवाले ‍एलोहीम की ओर से धर्मी ठहरेगा।” (भजन संहिता २४:३-५)

अपने पहाड़ी उपदेश में, याहुशुआ ने चेतावनी दी: “इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।” (मत्ती ५:४८) । ऐसी अनिवार्य आवश्यकता, जो गिरी हुई और पापी मानवता से बनी है, क्रूर होगी, लेकिन इस तथ्य के साथ कि याहुवाह पृथ्वी के अपने सभी बच्चों की छुड़ौती के लिए, जो भी आवश्यक हो, सभी प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए तैयार हैं, ताकि उन्हें उस राज्य तक पहुंचाया जा सकें।

पापी के लिए इस पर स्वयं के द्वारा परिपूर्ण बनना यह नामुमकीन है। “कौन कह सकता है कि मैं ने अपने हृदय को पवित्र किया; अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूँ?”(नीतिवचन २०:९)। याहुवाह जानते हैं कि कोई पुरूष या स्त्री खुदको शुद्ध नहीं कर सकते। उन्होंने स्वर्ग के अनंत संसाधनों से आत्मा में, पाप पर काबू पाने के लिए युद्ध में सहायता करने का वचन दिया है।

शैतान कई प्रकार से आत्मा को भ्रष्ट करने और पवित्रता को नष्ट करने की कोशिश करता है, जैसे कि यौन अशुद्धता। आधुनिक समाज में व्यभिचार, परस्त्रीगमन और अश्लील साहित्य को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है, जो मन को भ्रष्ट करते हैं और शैतान के प्रलोभनों को रोकनेवाले दरवाजों को और भी अधिक खोलते हैं। हालांकि, एक और क्षेत्र भी है जो आत्मा को शैतान के नियंत्रण में लाता है। विषय की असहजता के कारण इसकी अक्सर चर्चा नहीं की जाती। वो क्षेत्र है हस्तमैथुन।

पिछली शताब्दियों में, हस्तमैथुन को व्यापक रूप से एक अपमानजनक बुरी आदत माना जाता था। इसे “गुप्त आदत” के रूप में संदर्भित किया गया था और यहाँ तक ​​कि चिकित्सक वैज्ञानिकों ने भी हस्तमैथुन के साथ संदिग्ध स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में भी लिखा। इस कारण से इसे “आत्म-निंदा” का नाम भी प्राप्त हुआ।

चश्मा वाली बूढ़ी औरत खुलकर बात करने के द्वारा चौंक गईआधुनिक समाज की खुशियाँ और बड़े पैमाने पर अनैतिकता के साथ सामाजिक रूप से स्वीकार किए जाने वाला हस्तमैथुन, एक अंतर्निहित व्याभिचार के खतरों के रूप में बन गया है: अर्थात अवांछित या अनियोजित गर्भावस्था, एड्स, यौन संचारित रोग इत्यादि। यहाँ तक ​​कि कुछ मसीही जन भी अब हस्तमैथुन को शादी से बाहर ब्रह्मचर्य बने रहने के लिए किशोरों और बड़े वयस्कों को सक्षम करने के तरीके के रूप में बढ़ावा देते हैं।

हालांकि, मनुष्य का ज्ञान याहुवाह के लिए मूर्खता है। किसी बात को बार-बार कहने या ज़ोर देने से कि वह बात जायज़, फायदेमंद और नैतिक रूप से स्वीकार किया जा सकता है, तो उस बात को याहुवाह के नज़र में स्वीकार हो या सही, फायदेमंद और नैतिक हो । एक विश्वसनीय मार्गदर्शक बनने के लिए समाज के रीति-रिवाज बहुत बार बदलते हैं। पवित्रशास्त्र ही “सही क्या है” को निर्धारित करने के लिए एक अचूक मानक है।

बाइबिल वास्तव में “हस्तमैथुन” को विशेष रूप से संबोधित नहीं करता। कुछ लोग पौलुस का यह कहते हुए हवाला देते हैं कि “कामातुर” की तुलना में “हस्तमैथुन” करना बेहतर है, लेकिन वास्तव में, पौलुस ने कभी कुछ भी ऐसा नहीं कहा था। कुरिन्थियों को लिखी गई अपने पहले पत्र में, वह वकालत कर रहा था कि विश्वासी के लिए यह सबसे अच्छा था कि वे अकेले रहें। यह ध्यान में रखते हुए हमें यह समझना है कि उस समय मसीहियों के बड़े पैमाने पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था, इसलिए यह एक अनुचित सलाह नहीं हो सकती ! याहुवाह ने खुद यिर्मयाह को अकेला रहने के लिए कहा वरना फिर उसे अपनी पत्नी और बच्चों को बाबुल की आने वाली घेराबंदी में भुखमरी से मरते देखना पड़ेगा।

पौलुस की सलाह वास्तव में यह थी कि “कामातुर” से अच्छा शादी करना बेहतर था, जिसे हस्तमैथुन का एक परोक्ष रूप में संदर्भ समझा गया है:

“परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है।”

(१ कुरिन्थियों ७: ८-९)

हस्तमैथुन के साथ जो मुख्य समस्या है, और यह काफी बड़ी है, वो यह है कि यह मन की अशुद्धता को बढ़ावा देता है, जो बदले में, आत्मा को भ्रष्ट करता है। जो लोग इस गतिविधि में लिप्त हैं वे अधिक तीव्र यौन संतुष्टि पाने के लिए अक्सर यौन कल्पनाएं करेंगे। यौन कल्पनाएँ समय के साथ अधिक बढ़ती जाती हैं और अधिक रोमांचक कल्पनाओं की मांग भी बढ़ती जाती है। किसी के विचारों को नियंत्रित करने की इतनी कमी याहुशुआ के उदाहरण के बिल्कुल विपरीत है।

“जैसा मसीह याहुशुआ का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।” (फिलिप्पियों २:५)। याहुशुआ का मन शुद्ध था क्योंकि उन्होंने अपने पिता की इच्छा के लिए अपने हर विचार और भावना का आत्मसमर्पण किया।

याहुशुआ ने यह स्पष्ट कर दिया कि एक व्यक्ति के मन में व्याभिचार के बारे में कल्पना करना उतना ही पाप है जितना कि इस क्रिया में शामिल होना, उन्होंने दृढ़ता से कहा:

“तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’ परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्‍टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती ५: २७-२८)

हस्तमैथुन अक्सर कई पापों का परिणाम होता है, जैसे उत्तेजक फिल्में देखना या टेलीविज़न शो जो योन-क्रिया करने के लिए इच्छा को उत्तेजित करता है। हस्तमैथुन, पोर्नोग्राफी (अश्लील वीडियो) का ही परिणाम है, क्योंकि पोर्नोग्राफी को देखकर जो उत्साह पैदा होता है, वह स्वयं संतुष्टि से आता है जो तुरंत संतोष की तलाश करता है।

शादीशुदा लोगों में भी हस्तमैथुन बहुत स्वार्थी हो सकता है। यह उनके लिए आसान और तेज़ लग सकता है जो इसे हासिल करने के लिए अपने यौन साथी की परवाह न करते हुए, अपनी संतुष्टि की तलाश करते हैं और अपने साथी को वो संतुष्टि नहीं देना चाहते।

इस प्रकार, जो खुद को संतुष्टि देना चाहते हैं, भ्रम, दर्द और उनके साथी में विश्वासघात की भावना को बढ़ा देता हैं जिसके कारण अक्सर उनके विवाह संबंध टूट जाते हैं और इसका परिणाम उन्हें भुगतना *होगा।

खुशहाल एशियाई जोड़ासंभोग एक सृजनात्मक सृष्टिकर्ता की तरफ से एक सुंदर उपहार है। यह विवाह की अंतरंगता और गोपनीयता को साझा करने के लिए रचा गया था। यह प्रेम और विश्वास की परम अभिव्यक्ति है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति निस्वार्थ रूप से दूसरे साथी को संतुष्टि देने की कोशिश करता है। पवित्र विवाह के बंधन के भीतर संभोग में परस्पर एक-दूसरे का साथ देना, एक जोड़े को करीब और बेहद करीब और एक-साथ ला सकता है।

याहुवाह ने पुरुषों और महिलाओं को यौन-जीवन के रूप में बनाया लेकिन उनका उद्देश्य यह नहीं था कि लोग अपनी यौन इच्छाओं के दास हो। आदम और हव्वा को उनके शरीर के पूर्ण नियंत्रण में बनाया गया था।वे ऐसे प्राणी थे जिनकी यौन-आवश्यक्ताएं उनके उच्च स्वरूपों के नियंत्रण में थी। हस्तमैथुन एक ऐसा कार्य है जो अत्यधिक नशे की लत के समान है। एक व्यक्ति जिसने अपने जीवन में हस्तमैथुन की आदत को डाला है, वह या तो उद्धारकर्ता की शक्ति और सामर्थ के द्वारा इस पर काबू पायेगा या वह समय बीतने के साथ इस कार्य में और अधिक उलझता जाएगा।

जब एक पुरुष या (एक महिला) हस्तमैथुन करता (करती) है, हर बार जब यह किया जाता है, हस्तमैथुन करने की इच्छा और बढ़ जाती है। शरीर के अंगो को सहलाने और उस पर की गई मांगों के अनुसार क्रिया करना, इसकी इच्छा को पैदा करता है। एक व्यक्ति जो एक महीने में सिर्फ कुछ ही बार हस्तमैथुन शुरू करता है, समय के साथ-साथ, यह उसके लिए एक आदत के रूप में बढ़ती चले जाएगी।

बहुत से लोग वास्तव में यौन की लत के आदी हो गए हैं, जहाँ उनके हर जगने वाले विचार, सेक्स के आसपास केंद्रित है। ऐसे लोग वास्तव में खुदको शैतान का बंदी बनाते हैं, जो उसके बुरे प्रलोभनों के कारण उन्हें नियंत्रण में रखता है। किसी भी पापी के लिए एकमात्र आशा है: स्वयं के बाहर सामर्थ पाने के लिए याहुशुआ को आत्मसमर्पण करना।

जो सभी याहुशुआ में बने रहना चाहते हैं, उन्हें अपने जीवन के सभी क्षेत्रों को उद्धारकर्ता के हवाले कर देना चाहिए – उनकी कामुकता की क्षेत्र भी! अपनी यौन-पूर्तियों और इच्छाओं को आत्मसमर्पण करने की एवज में याहुवाह आपको अलैंगिकता का रूप नहीं देगा: “तब [एलोहीम] ने मनुष्य को…अपने ही स्वरूप के अनुसार…उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्‍टि की।” (उत्पत्ति १:२७)

याहुवाह ने दो अलग-अलग और विशिष्ट लिंग बनाए हैं। जो लोग अपनी कामुकता को उसके पास आत्म समर्पण करते हैं, वे अपना विशिष्ट लिंग नहीं खोयेंगे! इसके बजाय, पुरुष अधिक मर्दाना हो जाएंगे, व महिलाएँ और अधिक स्त्रीयोचित हो जाएँगे, जब आत्म संतुष्टि की आत्म नियंत्रण लेता है। जो व्यक्ति अपने गिरे हुए स्वभाव का गुलाम रहा है, वह उस गरिमा को फिर से हासिल कर लेगा, जो स्वतंत्रता के साथ केवल दिव्य व्यवस्था की आज्ञाकारिता से आती है।

जीवन के किसी भी क्षेत्र के माध्यम से, जिसके माध्यम से शैतान आप पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास करता है, उसका केवल याहुशुआ ही उत्तर है: “जो उसके द्वारा याहुवाह के पास आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है।” (इब्रानियों ७:२५) हम अपनी खुद की सामर्थ्य के प्रयासों से इससे मुक्त नहीं हो सकते। हम जानते होंगें कि क्या सही है और क्या गलत है। हम सही करने की कोशिश करते हैं, लेकिन गलत हो जाता है और जो गलत है उससे दूर रहना चाहिए। लेकिन यह ज्ञान वास्तव में हमें सही करने के लिए, हमें स्वतंत्र करने के लिए काफी नहीं है।

सही करने की इच्छा और पाप में पड़ने की इच्छा के बीच का अंदरूनी संघर्ष का पौलुस ने अच्छी तरह से वर्णन किया है। उसने लिखा:

परेशान अफ्रीकी-अमेरीकी जोड़ा“हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ। जो मैं करता हूँ उस को नहीं जानता; क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है वही करता हूँ।

तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती। इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।

क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ।

अत: यदि मैं वही करता हूँ जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करनेवाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है। इस प्रकार मैं यह व्यवस्था पाता हूँ कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूँ, तो बुराई मेरे पास आती है। क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो (याहुवाह) की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।

मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? हमारे प्रभु याहुशुआ मसीह के द्वारा ‍याहुवाह का धन्यवाद हो। इसलिये मैं आप बुद्धि से तो ‍याहुवाह की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।” (रोमियों ७ : १४,१५,१७-२५)

यही हर व्यक्ति के हृदय का रोना है, जो नशे के समान किसी भी पाप की लत पर काबू पाने के लिए अपनी सामर्थ्य में संघर्ष कर रहा है। और ठीक अगल पद्य उत्तर देता है:

“हमारे अभिषिक्त याहुशुआ मसीह के द्वारा याहुवाह का धन्यवाद हो।” (रोमियों ७:२५)

कई, कई पाप हैं। क्योंकि विरासत में मिली और जोती गई हर कमजोरी के लिए तथा पाप करने के लिए बहुत ही बढ़िया तरह से एक प्रलोभन को तैयार किया गया है। पाप पर जयवंत होने के लिए, केवल एक ही उत्तर है: उद्धारकर्ता। वह मुसीबत में कभी भी मदद करने के लिए उपस्थित हैं। वह उन सभी को जयवंत करेगा जो इसकी मांग करते हैं।

आप जब भी हस्तमैथुन के द्वारा परिक्षा में पड़ें तब:

  1. तुरंत याहुशुआ के पास प्रार्थना के लिए दौड़ें।
  2. जितना संभव हो उतना अपने आप को प्रलोभन से हटाएँ। यदि आप बिस्तर पर हैं, तो उठें यदि आप शॉवर में हैं, तो बाहर निकलें। सक्रिय रूप से किसी भी तरह अपने मन पर कब्जा करें।
  3. अपने मन को फिल्मों, चित्रों और कल्पनाओं से न भरें, जो आपकी यौन इच्छाओं को बढ़ाते है।
  4. सरल भोजन खाएँ, भारी मसालों से परहेज करें जो यौन इच्छा को बढ़ाते हैं। अत्यधिक माँस और अंडों का सेवन भी सेक्स ड्राइव को मजबूत करता है।
  5. सुनिश्चित करें कि आपके निजी अंग को साफ रखा गया है क्योंकि शारीरिक तरल पदार्थ, तेल इत्यादि जो नर और मादा जननांगों में और उसके आस-पास एकत्र होते हैं, वे जलन पैदा कर सकते हैं।

उद्धारकर्ता में विश्वास के द्वारा उपहार के रूप में प्राप्त करने वाले सभी लोगों को, जीत की गारंटी दी गई है।

इसलिये अब उन लोगों पर कोई दंडआज्ञा नहीं जो मसीह याहुशुआ में हैं, जो शरीर के अनुसार नहीं चलते, बल्कि आत्मा के अनुसार चलते हैं।

आकाश के तरफ देखती हुई सत्री“अभिषिक्त (याहुशुआ) मसीह में जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मुझे पाप और मृत्यु के व्यवस्था से मुक्त कर दिया है।

अत: अब जो मसीह याहुशुआ में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। [क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार चलते हैं।] क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह याहुशुआ में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।

अत: हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि याहुवाह हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?”…

इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। न गहराई, और न कोई और सृष्‍टि हमें याहुवाह के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह याहुशुआ में है, अलग कर सकेगी।” (रोमियों ८:1१-२, ३१-३२, ३७, ३९)

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