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At the heart of WLC is the true God and his Son, the true Christ — for we believe eternal life is not just our goal, but our everything.

While WLC continues to uphold the observance of the Seventh-Day Sabbath, which is at the heart of Yahuwah's moral law, the 10 Commandments, we no longer believe that the annual feast days are binding upon believers today. Still, though, we humbly encourage all to set time aside to commemorate the yearly feasts with solemnity and joy, and to learn from Yahuwah's instructions concerning their observance under the Old Covenant. Doing so will surely be a blessing to you and your home, as you study the wonderful types and shadows that point to the exaltation of Messiah Yahushua as the King of Kings, the Lord of Lords, the conquering lion of the tribe of Judah, and the Lamb of Yahuwah that takes away the sins of the world.
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सब्त भाग १ | याहुवाह का सारगर्भित व्यक्तित्व

याहुवाह की व्यवस्था
उसके व्यक्तित्व, उसके अन्तरतम विचारों और भावनाओं की सम्पूर्ण प्रतिलिपी है.
याहुवाह की व्यवस्था शाश्वत है. यह सर्वदा बनी रहेगी.

शैतान जानता है कि
पवित्र व्यवस्था स्वर्ग और पृथ्वी दोनों सरकार के लिए नियम है. वह यह भी जानता है
कि ऐसा कोई भी नहीं है जो व्यवस्था को तोड़ता है स्वर्ग में प्रवेश करने पाएगा.
इसलिए शैतान लोगो को यह विचार करने के लिये धोखा देता है कि अब व्यवस्था का पालन
करना आवश्यक नहीं है. शैतान सिखाता है कि व्यवस्था “अब बन्धनकारी नहीं है.” वह
दावा करता है कि व्यवस्था “क्रूस पर चढ़ा दी गई है.” यह न सिर्फ एक झूठ है परन्तु
यह धर्मशास्त्र का विरोध करना है!

क्योंकि मैं याहुवाह
हूँ, मैं बदलता नहीं. (देखिये मलाकी ३:६)

धर्मशास्त्र पवित्र
व्यवस्था के बारे में कहता है:

“इसलिए व्यवस्था
पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है.” (रोमियों ७:१२)

व्यवस्था बदली नहीं
जा सकती न ही दूर की जा सकती है क्योंकि यह पवित्र है. यह ठीक है!
यह अच्छी है – याहुवाह के समान.

याहुवाह की व्यवस्था खरी है, honey and honeycombवह प्राण को बहाल
कर देती है: याहुवाह के नियम विश्वास योग्य हैं,साधारण लोगो को बुद्धिमान बना देते
हैं;

याहुवाह के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर
देते हैं; याहुवाह की आज्ञा निर्मल है, वह आँखों में ज्योति ले आती है;

याहुवाह का भय
पवित्र है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; याहुवाह के नियम सत्य और पूरी रीति
से धर्ममय हैं.

वे तो सोने से और
बहुत कुन्दन से भी बढकर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकने वाले छत्ते से भी बढकर मधुर
हैं.

उन्हीं से तेरा दास
चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है. ( देखिये भजन
१९:७-११)

व्यवस्था पवित्र और
पूर्ण है. इसे बदलना या अलग कर देना इसका अनादर करना होगा की यह अपवित्र और अपूर्ण
है. यदि व्यवस्था बदली या अलग की जा सकती, इसका अर्थ यह होता कि व्यवस्था में कुछ
न कुछ गलत है. इस आशय का अर्थ यह होगा कि व्यवस्था देने वाले में कुछ गलत या अधर्म
है. बहुत से सच्चे मसीही रविवार के दिन उपासना करते हैं, यह विश्वास करते हुए की
व्यवस्था “क्रूस पर चढ़ा दी गई” जब याहुशुआ क्रूस पर चढाया गया. वास्तव में, क्रूस
ही सबसे बड़ा साक्ष्य है कि व्यवस्था शाश्वत है और “कभी अलग नहीं की जा सकती!”

धर्मशास्त्र घोषणा
करता है:

इसलिए कि सबने
पाप किया है और याहुवाह की महिमा से रहित हैं, (देखिये रोमियो ३:२३)

याहुवाह यह चाहता है
कि पाप की संरचना कैसे होती है इस बात के बारे में किसी को भी शंका न हो:

“पाप तो व्यवस्था का
विरोध है”. (१यहुन्ना ३:४)

बाइबल में व्यवस्था
तोड़ने के लिए क्या दण्ड है इसका स्पष्ट वर्णन है:

क्योंकि पाप की
मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु याहुवाह का वरदान हमारे प्रभु मसीह याहुशुआ में अनन्त
जीवन है (देखिये रोमियों ६:२३)

संसार को अपने
न्यायोचित दण्ड से बचाने के लिए याहुवाह ने अपने निज पुत्र को क्रूस पर बलिदान
होने के लिए दे दिया.

क्योंकि याहुवाह ने
जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर
विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए. (देखिये यहुन्ना ३:१६) 

यहाँ साक्ष्य है कि पवित्र
व्यवस्था कभी बदली नहीं जा सकती, अलग नहीं की जा सकती, या “क्रूस पर नहीं चढाई” जा
सकती. यदि व्यवस्था का बदला जाना सम्भव होता तो याहुशुआ नहीं मरता! पिता ने आसानी
से व्यवस्था को बदल दिया होता ताकि व्यवस्था को तोड़ने का दण्ड मृत्यु न हो. यह
दावा करना कि “व्यवस्था क्रूस पर चढाई जा चुकी है”
उद्धार के अपरिमित मूल्य का अनादर करना है. इस कारण कि पवित्र, उचित और धार्मिक
व्यवस्था का बदला जाना सम्भव नहीं था, याहुवाह ने चाहा कि पापियों को उनके मृत्यु
के दण्ड से जिसके वे योग्य थे बचाने के लिए अपने निज पुत्र को बलिदान के लिए दे
दे. याहुशुआ हमारा एवजी है. वह, व्यवस्था देने वाले का पुत्र, व्यवस्था तोड़ने
वालों के लिए मरा, ताकि हम बचाए जाएँ.     

hand, nail, and Ten Commandments

यदि व्यवस्था का बदला जाना सम्भव होता तो
याहुशुआ नहीं मरता! इस कारण कि पवित्र, उचित और धार्मिक व्यवस्था का बदला जाना
सम्भव नहीं था, याहुवाह ने चाहा कि पापियों को उनके मृत्यु के दण्ड से जिसके वे
योग्य थे बचाने के लिए अपने निज पुत्र को बलिदान के लिए दे दे.

बाइबल परामर्श और
धार्मिकता के निर्देशों से भरी हुई है. “धार्मिक” का साधारण अर्थ “ठीक काम” होता
है. दुसरे शब्दों में वे जो बाइबल में धर्मी कहे जाते हैं वे हैं जो याहुवाह की
व्यवस्था
का पालन करते हैं. धर्मशास्त्र की मूल्यवान वाचाएँ उनके लिए है जो
पवित्र व्यवस्था का पालन करते हैं: धर्मी

“क्योंकि तू धर्मी
को आशीष देगा; हे याहुवाह, तू उसको अपने अनुग्रहरूपी ढाल से घेरे रहेगा.” (भजन
५:१२)

“निश्चय धर्मियों के
लिए फल है” (भजन ५८:११)

“याहुवाह की ऑंखें
धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं. याहुवाह
बुराई करने वालों के विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले.
धर्मी दोहाई देते हैं और याहुवाह सुनता है, और उनको सब विपत्तियों से छुड़ाता है.”
(भजन ३४:१५-१७)

याहुशुआ ने स्पष्ट
रूप से कहा कि कोई विद्रोही व्यवस्था को तोड़ने वाला स्वर्ग में प्रवेश नहीं करने
पाएगा. केवल वे जो धर्मी हैं, जो “अच्छे कार्यों” के द्वारा व्यवस्था का पालन करते
हैं अनन्त जीवन के उत्तराधिकारी होंगे.

“मनुष्य का पुत्र
अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को, और
कुकर्म करनेवालों, [व्यवस्था को तोड़ने वाले]
को इकठ्ठा करेंगे और
उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे, जहाँ रोना और दांत पीसना होगा.

उस समय धर्मी [व्यवस्था का पालन करने वाले] अपने पिता के राज्य में सूर्य के
समान चमकेंगे.”
(मत्ती १३:४१-४३)

सभी सांसारिक
सरकारों की भी व्यवस्था होती है. पवित्र व्यवस्था को अलग कर देना, यह दावा करना कि
“क्रूस पर चढ़ा दी गई” है और “अब बन्धनकारी नहीं” है, यह इससे अधिक कुछ नहीं कि
विद्रोह को स्वीकार करना और व्यवस्था को तोडना है. धर्मशास्त्र व्यवस्था को
तोड़ने की बराबरी दुष्टता से करता है और यह स्पष्ट है कि कोई “दुष्ट” स्वर्ग में
प्रवेश नहीं करने पाएगा. भविष्य का परदा मनुष्यों की आँखों पर से हटाकर आरेखित
करते हुए बाइबल बताती है कि स्वर्गीय “नगर में सूर्य और चाँद के उजियाले की
आवश्यकता नहीं, क्योंकि याहुवाह के तेज से उसमे उजियाला हो रहा है, और मेम्ना उसका
दीपक है. . .परन्तु उसमे कोई अपवित्र वस्तु, या घृणित काम करने वाला, या झूठ का
गढने वाला किसी रीति से प्रवेश न करेगा.
पर केवल वे लोग जिनके नाम मेमने के
जीवन की पुस्तक में लिखे हैं.” (प्रकाशितवाक्य २१:२३,२७)

Ten Commandments

पवित्र व्यवस्था को अलग कर देना, यह दावा करना कि “क्रूस पर
चढ़ा दी गई” है     और “अब बन्धनकारी नहीं”
है, यह इससे अधिक कुछ नहीं कि विद्रोह को स्वीकार करना और व्यवस्था को तोडना है.

उद्धार के बहुमूल्य
योजना का उद्धेश्य यह था कि व्यवस्था के तोड़ने वालों के साथ मेल-मिलाप कराया जाए
और उन्हें व्यवस्था का पालन करने वाले बनाया जाए.

“क्योंकि पिता की
प्रसन्नता इसी में है कि याहुशुआ में सारी परिपूर्णता वास करे. और उसके क्रूस पर
बहे हुए लहू के द्वारा मेलमिलाप करके, सब वस्तुओं का उसी के द्वारा से
अपने साथ मेल कर ले
, चाहे वे पृथ्वी पर की हों चाहे स्वर्ग में की.” (कुलुस्यियों
१:१९-२०)

स्वर्ग फिर से
अनश्वर व्यवस्था को तोड़ने वालों से नहीं भरा जाएगा. छुटकारे का मूल्य जो कि पवित्र
एवजी के द्वारा भुगतान किया गया है के द्वारा व्यवस्था तोड़ने वालों को साफ और
शुद्ध मस्तिष्क दिया जा सकता है. वे व्यवस्था का पालन करने वाले बन सकते हैं.

“याहुवाह कहता है कि
जो वाचा मैं उन दिनों के बाद उनसे बांधूंगा वह यह है कि मैं अपने नियमों को
उनके हृदय पर लिखूँगा और मैं उनके विवेक में डालूँगा. फिर वह यह कहता है, मैं उनके
पापों को और उनके अधर्म के कामों को फिर कभी स्मरण नहीं करूंगा.”
(इब्रानियों
१०:१६,१७)

पिता और पुत्र का
यही अन्तिम आखरी लक्ष्य है: कि उनकी पवित्र व्यवस्था, उनके व्यक्तित्व का प्रतिरूप
एक बार फिर उनके मानव पुत्रों का चरित्र बन जावे. जब यह रूपांतरण पूरा हो जाएगा,
तब याहुशुआ ने जो प्रार्थना आखरी समय में अपने पीछे चलने वालों को गले लगा कर की
थी वह पूरी ही जाएगी.

“मैं केवल इन्हीं के
लिए बिनती नहीं करता, परन्तु उनके लिए भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास
करेंगे, कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझमें है, और मैं तुझमें हूँ, वैसे ही
वे भी हममें हों, जिससे संसार विश्वास करे की तू ही ने मुझे भेजा है वह महिमा जो
तू ने मुझे दी मैंने उन्हें दी है, की वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं, मैं
उनमें और तू मुझमे कि वे सिद्ध होकर एक हो जाए, और संसार जाने कि तू ही ने मुझे
भेजा, और जैसा तू ने मुझसे प्रेम रखा वैसा ही उनसे प्रेम रखा.” (यहुन्ना १७:२०-२३)

धर्मशास्त्र में
“महिमा”, “व्यक्तित्व” के लिए दूसरा शब्द है. व्यक्तित्व विचार और भावनाएँ हैं. जब
मूसा ने याहुवाह से प्रार्थना किया कि “मुझे अपना तेज दिखा”, शालीन उत्तर था:

मैं तेरे सम्मुख
होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा, और तेरे सम्मुख याहुवाह नाम का
प्रचार करूंगा. (देखिये निर्गमन ३३:१८,१९)

याहुवाह उसके सामने
होकर यों प्रचार करता हुआ चला  याहुवाह,
याहुवाह ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और
सत्य, हजारों पीढियों तक निरंतर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा
करने वाला है (देखिये निर्गमन ३४:६,७)

जब मुक्तिदाता की
“महिमा” (या व्यक्तित्व, उसके विचार और भावनाएँ) व्यवस्था के तोड़ने वालों को दी
जाती है वे व्यवस्था का पालन करने वाले बन जाते हैं. वे याहुशुआ के साथ एक हो जाते
हैं, वैसे ही जैसे वह पिता के साथ एक है. याहुवाह याहुशुआ में; याहुशुआ धार्मिकता
में और धर्मी उनमें. यह नियति उन सभी के लिए है जो पवित्र व्यवस्था का पालन करते
हैं, और शैतान के झूठ का इनकार करते हैं की वह “क्रूस पर चढ़ा दी गई”. व्यवस्था के
तोड़ने वाले कभी भी अनन्त राज्य के वारिस नहीं होंगे, परन्तु धर्मी, ठीक काम करके
व्यवस्था का पालन करने वाले सर्वदा बने रहेंगे, पिता और पुत्र की उपस्थिति में
आनन्द करते हुए जिनके द्वारा वे एक हैं क्योंकि प्रत्येक के अन्दर पवित्र, शुद्ध
और ठीक व्यवस्था है.

“बवन्डर निकल जाते
ही दुष्ट जन लोप हो जाता है, परन्तु धर्मी सदा लों स्थिर है. धर्मी सदा अटल रहेगा,
परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएँगे.” (नीतिवचन १०;२५,३०)

“तेरे लोग सब के सब धर्मी
होंगे; वे सर्वदा देश के अधिकारी रहेंगे.” (यशायाह ६०:२१)

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